लेखनी कविता -16-Dec-2021 "अफसाना स्वयं का"
हम सोचते थे अफसानों के बारे में,
रुक गए लोग रास्ते से घर जाने में।
हम अफसानों को हक़ीक़त में बदलते रहे,
लोगों के लिए अनजाने में।
कुछ उमर गुज़र गई खाने में,
कुछ उमर गुज़र गई पचाने में।
कुछ उमर गुज़र गई इतराने में,
कुछ उमर गुज़र गई आजमाने में।
कुछ उमर गुज़र गई समझाने में,
कुछ उमर गुज़र गई समझ जाने में।
जब लोगों की आंखें खुली,
रोकने वाले ख़ुद रुक गए।
हक़ीक़त के अफसाने और,
अफसानों की हक़ीक़त देखते रह गए।
#लेखनी सफर
#प्रतियोगिता हेतु
Swati chourasia
17-Dec-2021 07:03 AM
Very beautiful 👌
Reply
Swati Sharma
18-Dec-2021 11:35 PM
Thank you
Reply
Zakirhusain Abbas Chougule
16-Dec-2021 10:50 PM
Nice
Reply
Swati Sharma
16-Dec-2021 11:35 PM
Thanks
Reply
Ravi Goyal
16-Dec-2021 09:16 PM
वाह बहुत सुंदर रचना 👌👌
Reply
Swati Sharma
16-Dec-2021 09:57 PM
बहुत बहुत शुक्रिया सर 🙏🏻🙏🏻
Reply